शनिवार, 14 अगस्त 2010

चिट्ठी लाने में हुई देरी, माफ़ी चाहूंगा

आप तक नयी चिट्ठी लाने में कुछ ज्यादा ही वक्त लग गया . माफ़ी चाहूंगा... क्या कीजियेगा... मीडिया की दुनिया ही ऐसी है . ना दिन को सुकून ना रात को चैन…

खैर. कुछ जरूरी और गैरजरूरी कामों में इस कदर मशगूल हो गया कि आपतक पहुँच नहीं पाया . अब मेरी कोशिश रहेगी कि आप तक ये चिट्ठी कम से कम सप्ताह में एक बार जरूर मिले… वैसे वक्त का क्या भरोसा …पानी बनके बह जाये …

तो फिर इंतज़ार कीजिये नयी चिट्ठी का... मै यूं गया और यूं आया…तब तक आप सबों को जश्न-ए-आज़ादी... मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद …

धन्यवाद...1

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