दूसरे चरण के मतदान में 14 सीटों के लिए ५४ फीसदी मतदान हुआ. २५९ उम्मीदवारों की किस्मत इवीएम में कैद हो गई। नक्सली खौफ और छिटफुट हिंसा के बीच बुलेट पर बैलेट भारी पड़ा। कोई बड़ी घटना का ना होना ये यकीं दिलाता है कि प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इन्तजामात किये थे।
इस चरण के सभी विधानसभा सीटें नक्सल प्रभावित थी। नक्सली इलाकों के दहशतजदा लोगों के साथ शान्तिपूर्ण मतदान की उम्मीद बेमानी लग रही थी। लेकिन इन्हीं इलाकों में नयी इबारत लिखी गई। लोकतंत्र की जीत की नयी कहानी। खौफजदा शहर, विस्फोट, आये दिन बंद और अनहोनी की हमेशा आशंका के बीच वोटर उन ताकत पर भारी पड़े जिन्होनें लोकतंत्र को बंधक बना लिया है।
पहले चरण के मतदान की अपेक्षा दूसरे चरण के मतदान प्रतिशत में बढ़ोत्तरी भी ये साबित करती है कि वोटर अपने लोकतांत्रिक अधिकार के इस्तेमाल के लिए घरों से निकल रहे हैं। शान्तिपूर्ण मतदान के साथ वोटिंग प्रतिशत के बढ़ने का मतलब साफ है कि राज्य की जनता एक बेहतर भविष्य और बदलाव की परिकल्पना में जुट गयी है।
तीन चरण का मतदान अभी बाकी है। चुनाव आयोग, प्रशासन और वोटरों को यही उत्साह और हौसला बनाए रखना है. क्योंकि लोकतंत्र का यही तकाजा है कि हम अपना जज्बा बरकरार रखे तभी सपनों के कल को साकार कर सकते हैं। हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि तमाम विरोधों के बावजूद वोटरों की कतार और लंबी हो।
इस चरण के सभी विधानसभा सीटें नक्सल प्रभावित थी। नक्सली इलाकों के दहशतजदा लोगों के साथ शान्तिपूर्ण मतदान की उम्मीद बेमानी लग रही थी। लेकिन इन्हीं इलाकों में नयी इबारत लिखी गई। लोकतंत्र की जीत की नयी कहानी। खौफजदा शहर, विस्फोट, आये दिन बंद और अनहोनी की हमेशा आशंका के बीच वोटर उन ताकत पर भारी पड़े जिन्होनें लोकतंत्र को बंधक बना लिया है।
पहले चरण के मतदान की अपेक्षा दूसरे चरण के मतदान प्रतिशत में बढ़ोत्तरी भी ये साबित करती है कि वोटर अपने लोकतांत्रिक अधिकार के इस्तेमाल के लिए घरों से निकल रहे हैं। शान्तिपूर्ण मतदान के साथ वोटिंग प्रतिशत के बढ़ने का मतलब साफ है कि राज्य की जनता एक बेहतर भविष्य और बदलाव की परिकल्पना में जुट गयी है।
तीन चरण का मतदान अभी बाकी है। चुनाव आयोग, प्रशासन और वोटरों को यही उत्साह और हौसला बनाए रखना है. क्योंकि लोकतंत्र का यही तकाजा है कि हम अपना जज्बा बरकरार रखे तभी सपनों के कल को साकार कर सकते हैं। हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि तमाम विरोधों के बावजूद वोटरों की कतार और लंबी हो।
आइए राज्य में बदलाव की इस नयी पहल में हम सब भागीदार बने। क्योंकि ये अवाम की आवाज़ और जरुरत है जो विकास को गले लगाने का सपना देख रही है।
इन्हीं विचारों के साथ-
"इस धधकती राज्य की एक लंबी है व्यथा,
पीर कितनी सह रहे हैं क्या किसी को है पता....!"
धन्यवाद... ।
इन्हीं विचारों के साथ-
"इस धधकती राज्य की एक लंबी है व्यथा,
पीर कितनी सह रहे हैं क्या किसी को है पता....!"
धन्यवाद... ।
1 टिप्पणी:
पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ..बेहतरीन लिखा आपने..बधाई.
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