रविवार, 29 नवंबर 2009

चुनावी उदासीनता का मतलब...!

इस बार की चिट्ठी आई है झारखण्ड से। ठण्ड के इस मौसम में जहां चुनावी मौसम गर्म है।चुनाव का पहला चरण ख़त्म और चार चरण बाकी। आइये चीरफाड़ करते हैं पहले चरण का।

पहले चरण में 26 सीटों पर 52 फीसदी मतदान हुआ। नये गठबंधन बने और चुनाव प्रचार को हाई प्रोफाइल बनाने के लिए दिल्ली झारखंड में आ बसी. अखाड़े में दिग्गजों का जमावड़ा और उनकी सभा जनता को अपने पास आने का न्योता दे रही है. बुढिया कांग्रेस के युवा महासचिव, वीजेपी विद डिफरेन्ट के पालनहार, अनुभव का खजाना और मंच से उतरकर आम लोगों जैसा बनने की नौटंकी. साथ ही साथ युवा चेहरों की दस्तक. सियासत के महायोद्धा ने चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.
पर कहां कमी रह गयी? चुनाव आयोग के वायदे और अभियान का क्या हुआ? शायद इसका जवाब मतदाता दे चुके हैं. पिछले चुनाव की तुलना में इस बार मतदान प्रतिशत में भारी कमी , इस बात की गवाही देता है कि नेताओं के उठाये गये मुद्दे पर मतदाता खामोश हैं.
क्या वाकई मुददे है? या मुददों को हवा दी गई है. देश में झारखंड ऐसा पहला राज्य है जो पिछले नौ सालों के मुद्दत में तीन मुख्यमंत्रियों पर भ्रष्टाचार का आरोप देखा. देश के सबसे बड़े घोटाले का आरोप लगा. नक्सलवाद जैसे गंभीर मुददे कहां गायब हो गये?
ये किस्सा लोकतंत्र को बचाने की है. आगे और भी चुनावी चरण बाकी हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि झारखंडवासियों का विश्वास हमारे नेताओं से उठ गया है !
नेताओं के लिए इसी विचार के साथ-
"तुम कलीम चेहरे से दाग पोंछ लो अपने,
वरना कुछ नहीं होगा आईना बदलने से..."

धन्यवाद..

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