इस बार की चिट्ठी के केन्द्र में हैं दो ऐसे बच्चे ,जो ख़ुद तो मुफलिसी में जीते हैं लेकिन उनका जज्बा देख आप भी उनके मुरीद हो जायेंगे। इन बच्चों ने मुझमें एक नई उर्जा का संचार किया है और सिखाया कि ख्वाब देखने का हौसला अगर रखते हो तो उसे पाने का जोश कभी कम ना करो। यकीन मानिए इस चिट्ठी को पढने के बाद हम-आप जैसे लोग जो सफलता-असफलता की पटरी के बीच झूलते नज़र आते हैं और एक अदद किनारे के लिए पुरजोर कवायद में लगे रहते हैं। उस सपने को जीने और साकार करने में महती भूमिका निभाएगा।
" अपनी जमीं अपना आकाश पैदा कर ,
कर्मों से एक नया विश्वास पैदा कर ,
मांगने से मंजिल नहीं मिलती ,
मेरे दोस्त अपने हर कदम में विश्वास पैदा कर......।"
कल शाम में मन थोड़ा विचलित था। जी को सबकुछ नागवार सा लग रहा था। पुराने दिनों की याद भी ग्लूकोज का काम नहीं कर रही थी और भविष्य की संभावनाएं चश्में से निकल कर आसपास गोते लगा रही थी। ज़िन्दगी अक्सर हमें दोराहे पर खड़ा करती रहती है। ठीक किसी दरिया की तरह। पर उस पार क्या है ...इसके लिए दरिया को पार करना होता है। ऑफिस से निकलने के बाद कुछ कदम चलते ही सोचा जल्दी से ऑटो लिया जाए और घर पहुंचकर अपनों के बीच तरोताजा हुआ जाए। इंतजार की इस बेला में मैंने देखा सड़क के पार दो बच्चे जूता पॉलिश करने के लिए ग्राहक का बेबसी से राह ताक रहे थे। ना चाहते हुए भी कदम उधर को हो लिए। मैं चुपचाप वहां पड़े पत्थर पर बैठ गया।
" क्यूँ सर जी...जूते चमका दूँ। मेरा छोटा भाई बहुत अच्छा पॉलिश करता है।बोले तो एकदम झक्कास।"
मैंने महसूस किया इन बच्चों की उम्र बमुश्किल १४-१५ के आस पास होगी। लेकिन इनकी आंखों में गजब की चमक थी।
पैर आगे बढाते हुए मैंने पूछा "तेरा नाम क्या है ?"
बन्दूक की गोली की तरह आवाज़ आयी-"मेरा नाम मेवालाल और मेरे भाई का नाम सेवालाल है।" इस बार आवाज़ छोटे भाई की थी जो थोड़ा तेजतर्रार और होशियार लग रहा था। बड़ा भाई समय से पहले ही व्यस्क हो चुका था।
"पूछोगे नहीं ऐसा नाम क्यूँ "
मैंने पूछा "क्यूँ "
अरे इतना भी नहीं जानते सेवा करोगे तो मेवा खाओगे। इसलिए मेरे बापू ने हमारा नाम सेवालाल और मेवालाल रख दिया। है ना इंटरेस्टिंग सर जी।"
मैंने पूछा-"किताब,कॉपी और पेन की जगह हाथों में ये ब्रश क्यूँ"
"क्या करेंगे सर जी, जीने के लिए खाना बहुत जरूरी है और खाने के लिए कमाना। " बड़े भाई ने छोटे का समर्थन करते हुए बात को संभाला -"दरअसल जब से मां- बापू की मौत हुई है तब से जीने के लिए हमलोगों ने काम करना शुरू किया। "अब बैठ के अश्क तो नहीं बहाया जा सकता ना,ज़िन्दगी के और भी रंग है ना सर जी। "
मेरा मन उनकी बातों में रमता जा रहा है और मैं ज़िन्दगी की हकीक़त के और करीब पहुँच रहा था।
मेरे ये पूछने पर कि आख़िर ये जूते पॉलिश करने का धंधा ही क्यूँ,कुछ और भी तो कर सकते थे। "
जवाब सुनिए-"सर जी मेहनत इसलिए करता हूँ कि अपने सपने सच कर सकूँ और जूते इसलिए पॉलिश करता हूँ ताकि अपनी किस्मत के साथ दूसरे कि किस्मत पर से भी धूल हटा सकूँ।" इस रहस्य से पर्दा उठाया बड़े भाई ने। कहा-"कभी हमलोग भी स्कूल जाया करते थे। एक बार टीचर ने बताया कि आदमी की सफलता के कदम जूते से पहचाने जाते है। जब हमें ये दुर्दिन देखना पड़ा तो सोचा क्यूँ ना जूता पॉलिश करके ही अपने सपनों को नई उड़ान दूँ।
मैं आश्चर्य में पड़ गया कि इतनी छोटी उम्र में इन बच्चों का ज़िन्दगी और अपने सपनों के बारे में फलसफा शीशे की तरह साफ है और हम आप जैसे जाने कितने लोग ताउम्र गुज़ार देते है इसे समझने में।
सोचने लगा-" अपनी ज़िन्दगी में हर कोई किसी ना किसी को पॉलिश लगाते ही रहते हैं। कोई खुदा को पॉलिश लगाता है तो कोई अपने बॉस को। कोई रिश्ते सुधारने के लिए पॉलिश लगाता है तो कोई रिश्ते बनाने और बिगाड़ने के लिए। कोई आईना बदलने के लिए पॉलिश लगाता है तो कोई आईना तोड़ने
के लिए। हरेक अपनी किस्मत और सितारे को महफूज़ करने में मशगुल रहता है। कभी मेहनत कम पड़ जाती है तो कभी किस्मत दामन छुड़ा लेती है। कभी मज़बूरी से दो चार होना पड़ता है तो कभी लालफीताशाही दीवार बन जाती है।
लेकिन इन सबके बावजूद " मंजिलें उनको ही मिलती है जिनके सपनों में जान होती है। वही हकदार बनते है किनारों के जो बदल देते है बहाव धाराओं के। जब इन बच्चों में इतनी कुव्वत है कि मुफलिसी में भी अपनी आग को जिंदा रखे हुए हैं तो हम-आप जैसे लोग क्यूँ नहीं। क्यूँ की कम से कम मंजिल की जुस्तजू में कारवां तो है। जरुरत है बस एक सही मौके की. एक बार मिल गया तो समझो मंजिल मिल गई।
"कहाँ खो गए......। सितारे अभी गर्दिश में हैं, मेरा भी वक्त बदलनेवाला है सर जी।
मैंने पूछा-"तुझे कैसे मालूम।"
तपाक से छोटे ने जवाब दिया-"दिल चाहता है फ़िल्म देखी थी। उसी में है ना 'सितारे भी तोड़ लायेंगे हमें है यकीं।'बड़े ने छोटे को थपकी देते हुए कहा " मजाक कर रहा है सर जी....। दरअसल बापू कहा करते थे "कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। और हमलोग कोशिश के साथ मेहनत भी करते हैं। वो भी पूरी ईमानदारी से...।
"लो सर जी। आपका जूता चमक गया और देखना आपकी किस्मत का सितारा भी बहुत जल्द चमक जाएगा।" उसकी इस बात से तबीयत हरी भी हो गई और थोड़ा ताज्जुब भी की इसे कैसे मालूम की मेरा और इसका सितारा एक जैसा ही है। भले ही सामनेवालों को दिखता नहीं है।
मैंने जेब से दस का नोट निकाला और कहा-"रख लो इसे।"
तो बड़े ने बड़ी ही शालीनता से कहा-"नहीं सर जी मेरा तो पांच रुपैया ही बनता है। मैं तो पांच ही लूँगा।आप ही पांच रख लो । कभी धूप में निकलोगे तो काम आयेंगे और ऐसे ही पांच पांच से ना जाने कितने रुपैये बन जायेंगे. छोटे ने भी हाँ में हाँ मिलाया "अगली बार भी मेरी दूकान पर आना जूता पॉलिश करवाने को। क्या पता इन्हीं पांच-पांच रुपैये से हमारा सपना भी पूरा हो जाए और अपनी बड़ी सी दूकान हो जाए।" मैंने उसे धन्यवाद के साथ उसकी सफलता की दुआ की और ऑटो में बैठ गया।
ओझल होती उनकी आँखें मानों मुझसे कह रही हो...
"चमकने वाली है तहरीर मेरी किस्मत की,
कोई चिराग की लौ को जरा सा कम ना कर दे...."
रास्ते भर मैं सोचता रहा जब ये बच्चे अपनी मंजिल पाने के लिए इतना कुछ कर सकते हैं तो हम क्यूँ नहीं।माना की आज हमारे पास कुछ नहीं। लेकिन इस सोच में तो रहता हूँ की मेरी इब्तिदा और इंतिहा क्या है। सितारे गर्दिश में ही सही, सितारे बुलंद करने की जुगत में हमेशा भटकता तो रहता हूँ। लोगो को लग सकता है की हम क्या कर रहे हैं। अगर हमें विश्वास है अपनी मंजिल पाने की तो क्या गम है। राह में कितने ही सिलवटें हो, उसे तान कर एक दिन अपनी जीत का परचम लहरायेंगे, ये विश्वास जिस दिन हो गया समझिये आप सफल हो गए। मुझे तो पक्का यकीन हो गया है।
क्या आपके भी सितारे गर्दिश में हैं? तो क्या आपने अपने कदम में ये विश्वास पैदा किया या नहीं....? क्यूंकि आपका भी वक्त बदलनेवाला है सर जी .....।
धन्यवाद.....।
1 टिप्पणी:
सितारे गर्दिश में ही सही...मंजिल की जुस्तजू में मेरा कारवां तो है है सर जी...
सितारे गर्दिश में ही सही, सितारे बुलंद करने की जुगत में हमेशा भटकता तो रहता हूँ।
राह में कितने ही सिलवटें हो, उसे तान कर एक दिन अपनी जीत का परचम लहरायेंगे.
आपने बहुत ही अच्छा लिखा है, ये पंक्तियाँ हम जैसे नवजवानों को जो अपनी मंजिल पाने की चाह में है
उन्हें एक मजबूत विश्वाश तो जरूर देता है.
अच्छा लिखा है आपने , आपके अगले लेख के इन्तजार में ........
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