शनिवार, 4 अप्रैल 2009

अनुभव की अभिलाषा...

पिछली चिट्ठी में मैंने माखनलाल के दिनों की यादों को संजो कर आप सभी को लिखा था। इस बार की चिट्ठी भी उसी से मिलती जुलती है लेकिन इस बार किरदार, स्थान और परिस्थिति बदली हुई है। दरअसल इस चिट्ठी को आप तक पहुँचाने का श्रेय है - देव प्रकाश जी का। आप निजी खबरिया चैनल में हैं और मेरे अच्छे मित्र हैं। बहुत दिनों बाद कल अचानक दूरभाष पर बातचीत के दौरान पुराने चैनल की याद ताज़ा हो गई। खबरिया चैनल के अन्दर तरह -तरह की स्टोरी चलते रहती है ।जिसमे ड्रामा , इमोशन ,एक्शन और ट्रेजेडी के साथ आपको हिन्दीं फिल्मो की वो सारी मसाला मिलती है जो आम लोग नहीं देख पाते। वैसे हम जैसे टीवी पत्रकार के लिए ये रोज़मर्रा की जिन्दगी का एक हिस्सा भर है। ये कहानी है "अनुभव की तलाश अभिलाषा की...." जो बार बार उसके पास आकर चाँद की तरह बादलों में छिप जाती है। आप भी इस चिट्ठी को पढिये और अनुभव एवं अभिलाषा के रंगों की अनुभूति कीजिये।
चैनल की चाल बदल चुकी थी। कुछ सुस्त कदम और कुछ तेज़ कदम राहें चलते हुए नए दिग्ज्जों ने आकर मोर्चा संभाल लिया था। कुछ पुरानी चावलों ने मैदान छोड़ दिया थाअब सब कुछ नया था। रिसेप्शनिस्ट की मुस्कान, लॉन की हरियाली, कैन्टीन का गुलाबजामुन और न्यूज़ रूम में शार्ट-कट में फुदकती तितलियाँ । ख़बरों पर बहस न्यूज़ रूम, कॉरिडोर और केबिनों में भटकती हुई अक्सर लॉन में पहुँच कर धुआं-धुआं हो जाती थी। दूसरे चैनलों की तरह यहाँ भी न्यूज़ को डेस्कों की दराज़ में जगह दे दी गई थी। उन दराजों से राजनीति , खेल, कला, जिन्दगी और क्राईम की खबरें वक्त वे-वक्त बाहर आती और एक उम्मीद के साथ लोगो के घरों तक पहुँच कर पसर जाती थी।
न्यूज़ रूम के एक ऐसे ही डेस्क पे बैठा था -अनुभव। कामयाबी और अपने अनुभव के बुखार में तप कर उसका चेहरा खिला खिला मगर पीला दिखाई देता था। क्राइम की ख़बरों पर हर दिन तरह-तरह के कसरत करने वाले अनुभव के बारे में प्रचारित था, की वो बचपन से ही अनुभवी है। वो कवि था लेकिन उसे ज़बरदस्ती क्राइम डेस्क पर भेजने के पीछे उसकी योग्यता मुख्या वज़ह थी। वह ना सिर्फ़ तिल का ताड़ बना सकता था, बल्कि जरुरत पड़े तो उस ताड़ में से ताड़ी भी निकाल सकता था। इन चार सालों में अनुभव क्राइम और कविता को साथ साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कोई कविता नही लिखी थी। या यूँ कहें की कोई नई कविता नहीं मिली
अनुभव ने घड़ी देखी । कब के बारह बज चुके थे। समय घड़ी से निकल कर उसके चेहरे पर चस्पा हो गया था। जब कभी उसके चेहरे पर बारह बजते, वो अपना ई-मेल चेक करने लगता । लेकिन उसकी नज़रें बार-बार घड़ी की ओर उठ जाती थी। दरअसल उसे एक लड़की का इंतज़ार था, जो क्राइम डेस्क पर इंटर्नशिप के लिए आई थी। क्या वो नही आएगी ? इस सवाल ने गुलाब जैसे खिले उसके चेहरे को कैक्टस में बदल दिया। वो सीट से उठा, अनमने ढंग से टीवी के स्क्रीन पे नज़रे टिका दी। फैशन परेड में मॉडल बिल्ली की चाल चल रही थी। उसे लगा एक मॉडल की टांगे स्किन टेस्ट के लिए स्क्रीन से बाहर उछल आएगी। टांगो पर उसकी कल्पना और कविमन रफ़्तार पकड़ती, इससे पहले एक सुरीली आवाज़ उसके कानों से जा टकराई ।
"सर मैं आ गई॥ " नज़रों का कैमरा पैन करते ही वह दिलबाग हो गया। बगल में खूबसूरत हसीना थी। सामने स्क्रीन और मुंह में पान मसाला। वह चाह कर भी कुछ बोल नही पा रहा था। और ना चाहते हुए भी टाइप किए जा रहा था। " आप बहुत अच्छी स्क्रिप्ट लिखते है, हरिओम रस बता रहे थे.." लड़की ने लिपस्टिक और होठों के बीच तालमेल बिठाते हुए कहा। अनुभव को सूझ नही रहा था की वो क्या करे ? सब कुछ जानते हुए भी ट्रेन के यात्री की तरह बात की शुरुआत उसने नाम पूछने से की । "अभिलाषा, अभिलाषा कोहिली"
मोहतरमा न्यूज़ रूम की गहमा गहमी और चिल्ल- पों से घबराई हुई थी। एक ब्रेकिंग न्यूज़ से चैनल के तथाकथित सूरमाओं के बीच ज़बरदस्त उत्साह था। वे लोग कभी पीसीआर की तरफ़ लपक रहे थे तो कभी असैनमेंट डेस्क के पास इस तरह जमा हो रहे थे जैसे चौराहे पर कोई बन्दर नाच हो रहा हो। ये सीन और ऑफिस अभिलाषा के लिए बिल्कुल नया था ।
" सर मुझे क्या करना होगा, मैं काम सीखना चाहती हूँ सर....."अनुभव ने मन ही मन सोचा।' पोस्ट प्रोडक्शन ' में लगा दिया तो ये हमेशा मेरे पीछे ही रहेगी। वो कुछ बोले ही उस दिन के प्रोग्राम का प्रोमो बनवाने चला गया। उसका प्रोमो प्रेम पूरे ऑफिस में मशहूर था। अनुभव की कुर्सी खाली और बगल वाली कुर्सी पर ये नयी मसककली....ये अनोखा दृश्य ऑफिस में घुसते ही अजय ने सेकंड के दसवें हिस्से में अपनी आंखों में उतारकर अपनी सीट पर बैठ गया। बीच में लकड़ी की छोटी सी दीवार थी। एक तरफ़ अजय तो दूसरी तरफ़ उसके शब्दों में मटककली.... अजय के बारे में कहा जाता था की वो रिपोर्टर्स का रिपोर्टर है। इस चैनल में वो विशेष संवाददाता था। ये बात दीगर थी की पिछले छः महीने से उसने एक भी रिपोर्ट फाइल नही की थी। वो अनुभव की तरह कविताएँ लिखने में उसकी कोई दिलचस्पी नही थी। हाँ ये अलग बात थी की कविताओं को देखकर ग़ज़ल पढने और लिखने का मन करने लगता था। इसलिए सामने खूबसूरत ग़ज़ल को देखकर वो भावुक हो उठा था और अपने पके बालों को झूठलाने का तर्क ढूंढने लगा
नाजनीन को देखकर उसे मंजीत कौर टिवाना की एक कविता याद आ गई- " कुछ लड़कियां लम्बी रूट की बस होती हैं, जो आसपास की सवारी नही उठाती-" ये किस तरह की लड़की है। वो उससे बातें करने को कुलबुलाने लगा।
" आप इंटर्नशिप के लिए आई हैं ? क्या आप को रिपोर्टिंग में इंटेरेस्ट नही? "
अजय के इस सवाल को अगर सिर्फ़ अभिलाषा ने सुना होता तो शायद कोई बात नही , लेकिन अनुभव ने भी सुना और उसका दिल डूबने उतरने लगा। अनुभव अब तक कुंवारा था। लड़कियों से दोस्ती के मामले में उसका अनुभव चैनल के दूसरे सूरमाओं की तरह रफ्तार नहीं पकड़ी थी। जब कभी दोस्ती की इच्छा होती ,बिल्ली की तरह कोई सीनियर्स उसका रास्ता काट देता था। उसने दीवार की तरह प्रतिज्ञा ली "इस बार ऐसा नहीं होगा। अभिलाषा क्राइम डेस्क पर ही काम करेगी। कुछ भी हो जाए।"
अभिलाषा 'सास, बहू और साजिश ' जैसे किसी स्क्रिप्ट पढने में व्यस्त थी। हर दो तीन मिनट के बाद वो अनुभव की तरफ़ देख लेती थी। अनुभव को उसकी आँखों में एक अजीब किस्म का तिलश्म नज़र आया। ना वो आँखें झील सी थी ना वो कमल की तरह। उसकी आंखों में अनुभव को एक साथ सरसों के फूल और जलते हुए मकान नज़र आए। ये लड़की प्यार के काबिल है।
खैर समय बीता। मुंबई के नटवरलाल में उलझी अभिलाषा और एक कातिल बीवी के फुटेज देखने में व्यस्त अनुभव को इसका अहसास तक नहीं हो पाया की अभिलाषा चैनल के बड़े लोगों के चर्चाओ में ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह शुमार हो चुकी थी॥ "अभिलाषा... अभिलाषा...अभिलाषा.."न्यूज़ रूम में किसी लड़की का इतना शोर...और अब तक वो उस लड़की का दीदार नहीं कर पाया हो। सोचते हुए अनुराग के मुंह का स्वाद कसैला हो गया। वो अभी अभी एंकरिंग करके स्टूडियो से न्यूज़ रूम आया था। इस वक्त क्राइम डेस्क पर कोई नहीं था। "कहाँ गए सब के सब।" जवाब दिया अजय ने-" कैंटीन में" अनुराग को अचानक याद आया की सुबह से उसने कुछ नही खाया। पत्रकारों की परम्परा रही है की वो हर उस काम को होते हुए देख इर्ष्या से भर जाते है, गए-गए वो नहीं कर पाते। अनुराग पर इर्ष्या का वायरस आ चुका था । उसने अनुभव की ओर रहस्मय अंदाज़ से देखते हुए कहा-
" सुना इस बार क्राइम की टीआरपी गिर गई ?" अभिलाषा से अनुभव का अपने शौर्य गाथा का पहला अध्याय ख़त्म भी नहीं हुआ था की अनुराग ने टीआरपी की बन्दूक तान दिया था। कोल्ड ड्रिंक के सिप, अपनी वीर गाथा और अभिलाषा की मादक मुस्कान के बीच टीआरपी को लेन के मूड में कतई नहीं था अनुभव।
टीआरपी पर बहस करते करते अनुभव परमहंस की उस अदा तक पहुँच गया था , जहाँ पहुँच कर मान-अपमान , जय-पराजय, सवाल-जवाब , राग-विराग सब एक मुस्कान में तब्दील हो जाता है। अनुभव कोल्ड ड्रिंक की सिप लेता रहा और मुस्कुराता रहा। एंकर के पास किसी सवाल का जवाब ना हो और फ़िर प्रोडयूशर की तरफ़ से कुछ लिखा नहीं आए तो अक्सर एंकर के लिए दुविधा की स्थिति बन जाती है। अनुराग की समझ में नहीं आ रहा था की बातचीत का सिलसिला कहाँ से शुरू करें। दरअसल वो टीआरपी के बहाने अभिलाषा के टेबल पर घुसपैठ करना चाहता था। अनुभव को डर था की कहीं अनुराग ना पानी पटा ले। डर जायज़ था। पिछले चार सालों से वो शहर में एक अदद कंधे की तलाश में भटक रहा था। वो अपने दो कमरे के फ्लैट को घर बनाना चाहता था। प्यार के मामले में कामयाबी को वो तकदीर का तमाशा मान चुका था। जिस तरह खाना अकेले चटनी या आचार से रोज नहीं खाया जा सकता ,उसी तरह ज़िन्दगी भी अकेले मांगों क बैनर लटकाए नहीं चलायी जा सकती। इस तरह वो अभिलाषा को अपने अभियान में शामिल और अपने सपनों में जगह दे चुका था।
एडिट होने जा रही एक स्टोरी के विजुअल्स में ग्लिच की सूचना मिलते ही अनुभव तीर की तरह एडिट रूम की तरफ भगा। अब तक खड़े अनुराग ने अनुभव की खाली कुर्सी को तलवार की तरह खींच लिया। कैंटीन में अच्छी खासी भीड़ थी। शोर भी बहुत था। फिर भी अभिलाषा और अनुराग का समवेत ठहाका सबने सुना। पास के टेबल पर अंतरा ने अनुराग को ये भी कहते हुए सुना "why dont u try for anchoring..." एंकरिंग का ऑडिशन वो जब चाहे करवा सकता है.." लड़की देखी और लार टपकना शुरू। मन ही मन एक भद्दी गाली से अनुराग का स्वागत करते हुए अपनी चाय ख़त्म की और बाहर निकल गयी। जब दोनों कैंटीन से बाहर निकल रहे थे तो अनुराग का सर सिकंदर की तरह ऊँचा था और अभिलाषा के चेहरे पर उमराव जान की अदा।
दूसरे दिन अनुभव देर से ऑफिस आया। अभिलाषा ऑफिस में है और पीछे बैठी है। इस ब्रेकिंग न्यूज़ से अनुभव का दिल बैठ गया। उसकी नज़र अजय और अनुराग पर गयी। दोनों हंस हंस कर बातें कर रहे थे। अनुभव का खून सुख गया। उसे समझते देर ना लगी की एक बार फिर सीनियर्स की साजिश का शिकार हो चुका है।
फिर अचानक अभिलाषा गायब हो गयी। महीनों तक उसका पता नहीं चला। आठ महीने बाद जब वो चैनल में वापस आई तो उसके पंख जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। एक ने बताया की उसने एक महँगी कार खरीद ली है। दूसरे ने सूचना दी की उसी कंपनी के दूसरे चैनल में वो एंकर बन गयी है। किसी ने बम फोड़ा की उस चैनल में अभिलाषा की धूम मची है... कई टुकड़ों में बँट चुके अपने जिस्म को लिए-दिए अनुभव किसी तरह न्यूज़ रूम के एक कोने में सोफे पर धप्प से पसर गया।
उसे गुस्सा आ रहा था- किस पर,ये तय करना मुश्किल था। " दिल्ली खतरनाक है..." उसने सोचा और उसका मन बलिया पहुँच गया... अपने घर, अपने परिवार, अपने बचपन के दोस्तों की धुंधली यादों में॥ वो भावुक हो उठा। उसकी आँखें भर आई। उसे वो मशहूर शेर याद आने लगी---
"अब के बारिश में फिर ये शरारत मेरे साथ हुई,
मेरे घर छोड़ के सारे शहर में फिर बरसात हुई
..."
उसे पता भी ना चला कब उसके डेस्क का एक ट्रेनी जर्नलिस्ट उसके सामने आ खडा हुआ था और बता रहा था की कैसे उसकी छुट्टियों के पैसे काट लिए गए...बार बार कहने पर भी किसी ने कुछ नहीं किया। अचानक अनुभव बौखला गया--" साले जिस ऑफिस में कटी उँगलियों पर कोई मू(?) वाला ना हो,वहां तू मदद की बात करते हो। अबे गधे की औ(?) तुमसे कितनी बार कहा है ज्यादा ...(?)....(?)...अगली बार मेरे पास फटके तो उठाकर न्यूज़ रूम के डस्टबीन में पान की पीक की तरह फेंक दूंगा।
"गिलौरी खाया करो गुलफाम॥जुबां काबू में रहती है। कंधे पर हलकी सी धौल के साथ संकेत में छिपी सांत्वना के साथ ये थे मिश्र जी...वो कुछ और बुदबुदाते हुए आगे निकल गए --
" कहीं मत जाइएगा...एक छोटे से ब्रेक के बाद हम फिर हाज़िर होंगे...मुहब्बत की इस दर्द भरी अधूरी दास्तां के साथ।जिसमे एक बार फिर होंगी अनुभव की एक नयी अभिलाषा...."
धन्यवाद....।

3 टिप्‍पणियां:

कुमार संभव ने कहा…

कहने को बहुत कुछ है...........अनुभव की कहानी के बाद में यही कहूँगा की अनुभव गलत जगह सुकून तलाश रहा था.

Unknown ने कहा…

bahut achha likha hai aapne..
Badhai...

Unknown ने कहा…

सही कहा आपने..जो चीज़ हम चाहते है वो हमें नहीं मिलती...और जिसकी चाहत नहीं वो बार बार हमारे दरवाजे पर दस्तक देते रहते हैं...