शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

मज़हब ये तो नहीं सिखाता ?


ये चिट्ठी हमारे आवाम के नाम है। हाल ही में साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी मालेगांव बिस्फोट के मामले में की गई है , सेना के कर्नल पुरोहित भी इसी मामले में पकड़े गए हैं, अब ये वक्त कुछ सोचने का है। हमसब को धर्म के नाम पर होने वाले इन तमाम बखेडो को समझना होगा...
कुछ दिनों पहले की बात है, देश के किसी भी शहर में धमाके होने पर किसी कट्टर मुस्लिम संगठन का नाम आता था , तब मुस्लिमों को तो मानो पुरे विश्व में ही आतंकवादी माना जाने लगा । पर अब लगता है मंज़र बदल चुका है। अब इस बात से किसी को इत्तेफाक नही रखना चाहिए की आतंकवाद का कोई मज़हब नही होता। क्या हिंदू क्या मुस्लिम मज़हब के नाम पर फायदे बटोरने के लिए तमाम कवायद की जाती है, यह साबित हो चुका है। विश्व हिंदू परिषद् , बजरंग दल जैसे संगठन तो पहले से ही धार्मिक कट्टरता को हवा देते रहे है, पर अब वे आतंकी वारदातों को अंजाम देने में मदद करे तो यह उनके आतिवादी रवैये का चरम है।
बहरहाल ऐसे में हमारी सेना में भी धार्मिक कट्टरता हावी होने लगे तो इससे ज्यादा दुखदायी कुछ नही हो सकता। अब तक तो सेना के सभी जवान साथ मिलकर देश के शत्रुओं के खिलाफ लड़ते रहे थे, अब तक किसी मुस्लिम सिपाही को तो देशद्रोह के आरोप में नही पकड़ा गया, किसी ने जंग के मैदान में पाकिस्तानी सेना का पक्ष नही लिया, पर हिंदू धर्मान्धता से सेना भी नही बची ।
अगर धर्म के नाम पर ऐसा होने लगा है तो भइया हम कहेंगे-------
मत बांटो हमें मज़हब के नाम पे...
मत काटो हमें मज़हब के नाम पे,
है यही मज़हब तो फिर !
इससे अच्छा छोड़ दे मज़हब , खुदा के नाम पे........
धन्यवाद .......

1 टिप्पणी:

Ajay Kumar Karn ने कहा…

मज़हब के नाम पर फायदे बटोरने के लिए तमाम कवायद की जाती है, यह साबित हो चुका है और यह सच भी है. पर मुस्लिमों को पुरे विश्व में आतंकवादी मानने के पीछे क्या औचित्य है इसपर सायद लेखक ने अपना कलम मौन ही रख छोरा है.
सबसे अधिक उग्र पंथ ,धार्मिक अंधता, सामान्य जीवन में कटु हस्तकछेप,दुसरे धर्म का तिरस्कार,अन्य पंथ के मूल भावनाओ का अतिकर्मन, ये सब और बहुत कुछ, विसेस रूप से मुस्लिम संगठन में तक़रीबन ५०० या उससे भी जयदे समय से मौजूद है. इसे लगभग सभी मुस्लिम या तो पूर्ण रूप से या अंसिक रूप से समर्थन करते है और भारत में राजनेता जो secular है उनका एक मात्र धर्म मुस्लिम है और ये भी उपुक्त भावना से ही प्रेरित हैं.ये सब बहुताएत में हो रहा है. फिर जो अधिक दिखता या होता है वही प्रासंगिक है सेस गौण कहलाता है. फिर मुस्लिमो का बदनाम होना इसी का परिणाम है.
मजहब के नाम पर तो हम सब जनम से ही बटते है फिर "मत बांटो हमें मज़हब के नाम पे...
मत काटो हमें मज़हब के नाम पे,
है यही मज़हब तो फिर !
इससे अच्छा छोड़ दे मज़हब , खुदा के नाम पे........" का तो कोइ मतलब ही नहीं है.
उम्मीद करे की अब कोइ ऐसा हो जो हमें मजहब के नाम पर ही जोर सके.