ये चिट्ठी है सचिन रमेश तेंदुलकर के नाम। इस शख्स को जरा ध्यान से देखिए। एक मध्यवर्गीय का बेटा , जिसने गोरे जेंटलमैन के एक अभिजात खेल में विनम्रता से देसी प्रतिभा का एवरेस्ट खड़ा कर दिया। इस मास्टर ब्लास्टर की लोकप्रियता महाराष्ट्र से निकलकर भारत और फिर एशिया की सीमाएँ लांघकर ग्लोबल हो गई। क्रिकेट रूपी काजल की कोठरी में दो दशक बिताने के बाद भी इस लिटिल मास्टर ने एक भी दाग अपने सफेद और रंगीन कपड़ो पर नहीं लगने दिया। जिसकी उपलब्धि पर चाहने वालो की आखें नम हो जाती है। जिसका खेल देखने के लिए सरहद की सीमायें छोटी पड़ जाती है । जिसके कीर्तिमानों के देसी-विदेशी, श्वेत-अश्वेत , आमिर-गरीब ,बच्चे-बुढे, सब मुरीद हैं । जिसके चौके और छक्को के बीच विज्ञापन कंपनियां झूमती है। जिसके बैटिंग स्टाइल में सर डॉन ब्रैडमैन को अपना ज़माना याद आता है । जिसके मैदान में आते ही स्टेडियम के हर तरफ़ से आवाज़ आने लगती है ..... सचिन जस्ट डु इट , सचिन रोक्स , कम ऑन सचिन और न जाने क्या-क्या। क्रिकेट का ये नाटा उस्ताद जब सामने होता है तो दिग्गज गेंदावाज़ भी बौलिंग से कतराता है । जिसकी कामयाबी सबको अपनी कामयाबी लगती है । फैबुलस फौर का सबसे कद्दाबर शख्स जब भी क्रीज़ पर होता है तो ऐसा लगता है जैसे कोई नया माइलस्टोन इनके दीदार को तरस रहा हो इस क्रिकेट किंग का जब बल्ला बोलता है तो पुराने रिकोर्ड टूटते हैं और नए बनते हैं । ऐसा शख्स जब टेस्ट क्रिकेट में अपने १२ हज़ार रन और ४०वें शतक की ख़बर देता है तो अकस्मात् कुछ दिनों पहले की याद जेहन में तरोताजा हो जाती है । जब क्रिकेट के कुछ तथाकथित ठेकेदार उनके चूकने की बात करते थे । कितने ही लोगो को लगता था कि सचिन रूपी सूर्य अस्त हो चुका है । हर तरफ से ये आवाज़ उठने लगी थी की अब फैवुलस फौर का गोल्डन पिरिअड इतिहास के सुनहरे पन्नो में समां चुका है । लेकिन ऑस्ट्रेलिया के साथ सिरीज़ के दौरान जब सचिन टेस्ट क्रिकेट के १२ हज़ार रन रूपी गगनचुम्बी ईमारत को बिना किसी बाधा के पार कर रिकार्डो का एक नया हिमालय बनाया तो अपने आप उनके आलोचक गूंगे हो गए । उनकी दबी जुबान से भी निकला ही होगा.... वाह सचिन वाह । लेकिन इस महान खिलाड़ी की बानगी देखिये -- वे इन सब चिन्ताओ से दूर रहते हैं की उनकी उपलब्धि का बखान हो रहा है की नही । वे तो बस अपना कम करते रहते है। बकौल सचिन '' मैं इस बारे में नहीं सोचता की कौन मेरे बारे में क्या बोलता और सोचता है। रिकार्ड तो बनते रहते हैं। मगर मेरे लिए टीम का हित सबसे ऊपर है। १६ की उम्र में अपनी मर्ज़ी से आया था। मुझे ये बताने की कोई जुर्रत न करे की मुझे संन्यास कब लेना है । अपनी मर्ज़ी से आया था अपनी मर्ज़ी से जाऊंगा।''ये नजीर सचमुच उनके चाहनेवालों के लिए एक सुखद संदेश और आलोचकों के लिए यादगार तमाचा है।
क्रिकेट के इस लिजेंड को भविष्य की शुभकामनाओ के साथ हैट्स ऑफ़......... ।
2 टिप्पणियां:
very good writing. fabulas. nice.
wah sachin wah...khoob likha hai aapne sachin ke baare me.
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