गुरुवार, 6 नवंबर 2008

ख़ुद को बदलने का वक्त...........

ये चिट्ठी आई है - www.humaap.blogspot.com के अखिलेश जी द्वारा , आप भी इसे जरुर पढ़े और अपना महत्वपूर्ण सुझाव देने का कष्ट करे.......आप सब का समीर .......
हो गई है पीर, पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से अब कोई गंगा निकलनी चाहिये,
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
कवि दुष्यंत के कहे इन कथनों को अब चरितार्थ करने की जरुरत है। हमारे देश में भी अब एक आन्दोलन ,एक बदलाव की जरुरत है। हम भारतीय भले ही अपनी गंगा -जमुनी संस्कृति और साझे विरासत पर गर्व करे लेकिन आज हमारे देश में साम्प्रदायिकता हावी है। साझे विरासत पर क्षेत्रवाद हावी है। ऐसे में हम युवाओ को अमेरिकी बराक ओबामा से और अमेरिकियों से सबक लेने की जरुरत है।जहाँ राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपने पहले भाषण में ओबामा ने संबोधित किया -" वी आर नॉट रेड ऑर ब्लू स्टेट्स , वी ऑल आर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका " । मतलब अमेरिका एक है। वही हमारे भारत में अभी क्षेत्रवाद भयानक रूप ले चुका है। बिहारी , बंगाली, मराठी, असामी सभी की जंग छिडी है। धर्म के नाम पर हम बंट चुके हैं। धर्म भी भयावह रूप ले चुका है, मुस्लिम और हिंदू आतंकवाद की बात की जा रही है।ऐसे में युवाओं को ख़ुद समझना होगा क्षेत्रवाद, धर्म जैसे मुद्दों से किनारा कर भारत को एक बनाना होगा । कहते है ना -" गंगा की कसम ......यमुना की कसम , ये ताना बाना बदलेगा, तू ख़ुद तो बदल .....तू ख़ुद तो बदल तब ये ज़माना बदलेगा........

6 टिप्‍पणियां:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

आज यह दीवार ,पर्दों की तरह हिलने लगी .
शर्त लेकिन थी कि यह बुनियाद हिलनी चाहिए

आपकी चिट्ठी मिली स्वागत है

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

khud badloge tabhi jamana badlega
narayan narayan

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

-" गंगा की कसम ......यमुना की कसम , ये ताना बाना बदलेगा, तू ख़ुद तो बदल .....तू ख़ुद तो बदल तब ये ज़माना बदलेगा........
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है ।
लिखते रहिए, लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है

Amit K Sagar ने कहा…

ब्लोगिंग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. दूसरों को राह दिखाते रहिये. आगे बढ़ते रहिये, अपने साथ-साथ औरों को भी आगे बढाते रहिये. शुभकामनाएं.
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साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

समाज को बदलने के लिए भगीरथ प्रयास की जरूरत है
बूँद बूँद से ही सागर बनेगा, प्रयास जारी रखना चाहिए

समीर यादव ने कहा…

हम सब कहीं न कहीं एक डोर से बंधे हुए हैं...बस ये अहसास समय समय पर महसूस करने की जरुरत है......करते भी हैं...लेकिन कुछ खास संकटों पर.... इसे अद्यादन करने की जरुरत है....जिसमें आपके लेख जैसे प्रयास भी समाहित हैं.
स्वागत है आपका शुक्रिया...!