इस बार की चिट्ठी है आवाम के नेताओ के नाम और आवाज़ है पूरे हिंदुस्तान की । मुंबई पर आतंकी हमलों ने देश को हिलाकर रख दिया है। ये घटना न तो पहली बार थी न ही आखिरी । जाने कितनी बार आतंकियों ने देश के विभिन्न हिस्सों को अपना खुनी निशाना बनाया लेकिन हर बार भारत का ही सीना छलनी हुआ है। अब ये बात बिल्कुल साफ़ हो चुकी है की इन नेताओ के भरोसे आतंकवाद से लड़ना मुश्किल हो गया है।लेकिन आतंकवाद जैसे सवालात पर देश के सियासी नेता क्या सोचते है॥ ज़रा आप भी गौर फरमाइए।
शिव राज पाटिल (पूर्व केन्द्रीय गृह मंत्री ) कार्यकाल के दौरान देश पर आतंकी हमले होते रहे और जनाब सूट पर सूट रहे। मुंबई हादसे के बारे मे सही जानकारी नही थी। जिसके चलते टीम देर से हरकत मे आई।
लाल कृष्ण आडवाणी (विपक्ष के नेता) हमलोग साथ में (यूपिये) आना चाहते थे। लेकिन वे लोग शायद कल आयें तो मैं आज ही सबसे पहले पहुच गया।
अरे आडवाणी साहब कम सेs कम इस मुद्दे पर तो आरोप प्रत्यारोप की होली खेलना बंद करो । । क्युकी जनता इन मामलो पर राजनीति न सुनना पसंद करती है न देखना। वो इन सारे मसालों का चाहती है स्थायी समाधान।
अच्युतानंदन (सी एम केरल) मैं मेज़र संदीप के घर सहानुभूति जताने गया था। अगर संदीप शहीद नही होते तो कोई कुत्ता भी झाँकने नहीं जाता।
मुख्तार अब्बास नक़वी (नेता बीजेपी) लिपस्टिक और पाउडर लगाकर मोमबत्ती के साथ विरोध नही किया जाता। पश्चिमी सभ्यता के साथ पोलिटिशियन को गाली मत दो।
विलासराव देशमुख (मौजूदा मुख्यमंत्री महाराष्ट ) मुंबई मे हमले पर हमले होते रहे और देशमुख जी चुप्पी साधे रहे मानो उन्हें सांप सूंघ गया हो। व्यवस्था बनाये रखने मे पूरी तरह विफल।
आर आर पाटिल (पूर्व उप मुख्यमंत्री महाराष्ट ) बड़े बड़े शहरों में छोटी छोटी बातें हो जाया करती है।
नरेन्द्र मोदी (मुख्यमंत्री गुजरात ) कुछ हफ्ते पहले साध्वी प्रज्ञा ठाकुर मामलों पर ऐ टी एस को अपना निशाना बनने और देशद्रोही जैसे संगीन आरोप लगाने वाले मोदी इस हमलो मे मारे गए ऐटीएस जवान और चीफ को १ करोड़ का सियासी लालीपॉप थमाने मुंबई पहुँच गए। लेकिन कविता करकरे का इसे लेने से इंकार।
शकील अहमद (सांसद कांग्रेस ) नेता का काम पॉलिसी बनाना है। चौकीदारी करना नहीं।
शिबू सोरेन (मुख्यमंत्री झारखण्ड ) हमारे राज्य मे ताज और ओबेरॉय जैसा होटल नहीं है जो आतंकी हमला हो।
राम बिलास पासवान (लोजपा नेता ) रांची मे एक बड़ी सभा को भाषण बाजी करते रहे । एअरपोर्ट पर एक साथ उनका और इस हमले मे मारे गए मलयेश का शव उतरा। लेकिन उन्हें संवेदना व्यक्त करने तक की फुर्सत नही थी।
प्रकाश जावारेकर (नेता बीजेपी) एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू मे कहा की मुझे तो आपके चैनल ने आतंकवाद पर चर्चा के लिए बुलाया। लेकिन इस मुद्दे पर पूछे गए हर सवाल पर गोल मटोल बातें करते रहे।
सांसद (यूपी ) दो दिन बैठकर मैंने वहां एन्जॉय किया। मैंने चुनावी रणनीति तय की अपने लैपटॉप पर।
बकौल मेज़र जेनरल आर एल क्लात्बक - शासन व्यवस्था से विश्वास उठ जन आतंकवाद की पहली और सबसे बड़ी जीत है।
एन डी टीवी को नेताओ के प्रति नफरत और घृणा से भरे दो लाख एस ऍम एस मिले हैं।
एक सर्वे मे ८६ फीसदी लोगो का मानना है की नेतागण इस हमलो को रोकने मे पूरी तरह नाकाम रही है।
ये हमारी राजनीति व्यवस्था की विडम्बना ही है की ये नेता देशवासियों में उम्मीद जगाने मे असफल रहे। नेताओ होशियार। जनता जागने लगी है मुंबई हादसों पर उसकी प्रतिक्रिया सिर्फ़ एक बानगी है सब्र के फूटते पैमानों का। इससे पहले की हालत बेकाबू हो जाए संभाल लो अपना दामन। आमजनों और बेक़सूर की कीमत पर देश को दांव पर लगाने का खुनी खेल अब बंद करना होगा। अगर ये अपने मुंह पर लगाम नही लगा सकते तो देश क्या चलाएँगे। सियासत के लोग अगर इस दिशा मे कुछ ठोस कदम नही उठाएँगे तो जनता को ही इन्हे सबक सिखाने को आगे आना होगा। क्यूंकि अगर जनता जाग गई तो ये नेतागण कभी चैन की नींद नही सो पाएंगे।
धन्यवाद.....।
4 टिप्पणियां:
गलती सिर्फ़ इन राजनेताओं की नही है गुनाहगार जनता भी है। जो चुनाव के दौरान या तो बोट नही देती या अपने छोटे - छोटे स्वार्थों में उलझकर ग़लत लोगो को चुनती है। नेताओं को नेता तो हम ही बनाते हैं मतलब नेतृत्व की ताकत तो हमसे ही मिलती है। हम सुधर जाए तो इनकी औकात कहाँ जो ऐसी बहकी बहकी बातें करें..
अच्छा पोल खोला है नेताओं की ....
दिवार क्या टूटी मेरे कच्चे मकान की,
लोगों ने जहन से रास्ता बना लिया...
नेताओं के राजनैतिक घरौदें इतने कच्चे हैं कि लोग तो उसमे रास्ता बनायेंगे ही. क्या कमी है और किसमे कमी है ये फैसला इन नेताओ को ही करने दीजिये. मौका तो आही रहा है लोकसभा चुनाओ का, तो अपनी अक्ल लगाइए और देश बचाइए..
wah bhai aapne apni cthi me en netawon ka kaala chitha khola aur yea bhi dikhayea ki enki sooch kahan tak hai.
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