शनिवार, 22 नवंबर 2008

.....आखिरी ख़त!!!

आपलोगों के लिए एक बार फ़िर चिट्ठी लाया हूँ। ये चिट्ठी लिखी गई है रामविलास द्वारा...
डीयर डिम्पू ,
डेढ़ बरस तक जो मुझसे प्यार किया , उसका शुक्रिया । आशा है पत्र मिलने तक तुमने नया प्रेमी पकड़ लिया होगा। उसके साथ अब डेटिंग पर भी जा रही होगी। हर प्रेमी को बहुत स्ट्रगल करना पड़ता है। मैं भी स्ट्रगल कर रहा हूँ । प्यार के ढाई आखर कमबख्त बड़े मुश्किल से पकड़ में आते हैं। मैंने भी तुम्हे मिस करने के बाद मुहल्ले की ही शीनो पर लंगर डालना शुरू कर दिया है । प्रेम का यह मेरा चौथा प्रयास है। लेकिन इन प्रयासों ने मुझे एक सीख दी है। सोनी तुम तो जानती हो कि प्रेम शुरू करते ही कमबख्त लव लेटर लिखने पड़ते हैं। पता है न, मैंने तुम्हे कितने ख़त लिखे ? पहले के दो प्रेम पत्रों में भी लेटरबाज़ी करनी पड़ी। बड़ा झंझट है प्रेम मार्ग में। इसलिए तुम मेरे समस्त प्रेम पत्र लौटा देना। तुम्हे लिखे उन प्रेम पत्रों पर सफेदा पोत कर सोनी कि जगह शीनो लिख दूंगा । इससे मेरी मेहनत बच जायेगी। प्लीज, मेरे प्रेम पत्र लौटा देना, क्यूंकि उनकी फोटो कॉपी भी मेरे पास नही है । सोनी , तुम मेरी वह फोटो भी वापस कर देना । तुम तो जानती हो कि वही एकमात्र फोटो ऐसी है, जिसमे मैं ठीक-ठाक दिखता हूँ। वह मेरे पहले प्यार वाले दिनों कि फोटो है । बड़ी कीमती है । मेरे प्रेम पत्रों के साथ मेरी वह फोटो भी भेज देना, ताकि शीनो को भेज सकूँ।
और हाँ , अपने प्यार कांड में डेढ़ बरस के दौरान मेरे द्वारा किए गए खर्च का हिसाब भेज रहा हूँ। आशा है, तुम शीघ्र ही इस खर्च का भुगतान कर भरपाई कर दोगी, ताकि तुम्हे भी नए प्यार के लिए मेरी ओर से एनओसी जारी हो सके और मैं भी नए प्यार पर खर्च करना शुरू कर दूँ। हिसाब इस प्रकार है: चाट पकौडी ८९५ रुपये, कोल्ड ड्रिंक्स २९३८ रुपये , स्नेक्स ५६४५ रुपये , जूस ३८४५ रुपये, फ़िल्म १२३५ रुपये , चैटिंग 1499 , मोबाइल फोन वार्ता २५४६ रुपये , पेट्रोल खर्च ४२५५ रुपये , गिफ्ट ७८५० रुपये, सकल योग ३०७०८ रुपये ( अक्षर में तीस हज़ार सात सौ आठ रुपये मात्र )। कृपया, ये रुपये मुझे शीघ्र भेजने की कृपा करना, ताकि मैं अपने शीनो के प्यार में इन रुपयों को कुर्बान कर सकूं। और हाँ यदि तुम्हारे पास मेरे द्वारा दिए गए गिफ्ट पड़े हो तो , उन्हें भी मैं आधी दाम पर खरीदने को तैयार हूँ। तुम उनका हिसाब बनाकर मेरी मूल रकम में से काटकर पुराने गिफ्टों में से भी भेज देना । इस पत्र के साथ तुम्हारे पुरे चार किलो तीन सौ ग्राम वजन के पत्रों का पुलिंदा भी संलग्न है, ताकि तुम्हे भी प्रेम पत्र लिखने में परेशानी न उठानी पड़े। तुम्हारी वह सुंदर फोटो भी मैं भेज रहा हूँ, जो तुम अपने नए प्रेमी झंडामल को दे सकती हो। तुम अपना हिसाब भी बता देना। वैसे तुम्हारा खर्च तो कुछ भी नही आया होगा। तुम हमेशा अपना पर्स भूल जाती थी । कमबख्त प्यार में लड़को की ही जेब ढीली होती है।
खैर , बीते प्रेम पर कैसा अफ़सोस , जब नया भी पधार चुका है ? आशा है, तुम मेरा हिसाब जल्दी से जल्दी साफ करके मुझे नए प्यार में कूदने में मदद दोगी। तुम्हे सातवां प्रेम मुबारक हो।
तुम्हारा छठा पूर्व प्रेमी मोती.....

शनिवार, 15 नवंबर 2008

हम तो ऐसे हैं ''भइया''

भइया शब्द के एक ही मायने है ''बड़ा भाई'' और बड़ा भाई बाप समान होता है। यू पी बिहार और झारखण्ड के लोग दक्षिण और पश्चिम भारत में भइया शब्द से संबोधित होते हैं। होना भी चाहिए। ये तीनो राज्यों के लोग देश के अगुआ रहे हैं। हर क्षेत्र में यहाँ की आवाम ने अपनी पहचान छोडी है। पाटलिपुत्र जो वर्त्तमान में पटना है देश की प्रथम राजधानी थी। सबसे पहले सम्राट अशोक ने ही विकाश के सही मायने बताये थे। तो मेरे कहने का मतलब है कि पिता समान बड़े भाई की तौहीन करना सुधरे बच्चों का काम नही, असंस्कारी और नालायक बच्चों का काम है। एकल परिवार की हवा है, फिर भी शिक्षित और संस्कारी बच्चे अपने पिता के पाँव को भगवान् राम की खराँव समझते हैं। पर कुछ उदंड बच्चे भी हैं जो अपने बाप को घर से निकाल वृद्धा आश्रम में रहने पर मजबूर करता है। चार बच्चों में अगर एक कुपुत्र निकल जाए तो उसे बच्चा समझ कर माफ़ कर देना चाहिए। आख़िर हम बाप मेरा मतलब है भइया जो ठहरे। कुछ उदंड बच्चे अगर महाराष्ट्र छोड़ने को कहते हैं तो छोड़ दीजिये। बागबां की तरह हमें भी उसे ठुकरा कर देश के भविष्य की और देखना चाहिए। हमें ये याद रखना चाहिए कि इस तरह के मुद्दे को हवा देकर कुछ गुंडे स्वभाव के बच्चे अपनी जेब भरना चाहते हैं। इसलिए मेरे भाई बह्काबे में मत आओ। बड़े भाई की जिम्मेदारी निभाओ। गाली देने और तौहीन करने से कोई बड़ा नही बन जाता। छोटा बाबू, बाबू ही रहता है और भइया बाप ही कहलाता है।
ये चिट्ठी हम सब को राजीव ने लिखी है।

मंगलवार, 11 नवंबर 2008

अलविदा लार्ड ऑफ द विन.....

इस बार की चिट्ठी आई है ऑफ़ साइड के भगवान, सौरव चंडीदास गांगुली के नाम और लिखा है हिंदुस्तान ने।

विदाई की भावुक नमी में जीत का एक चम्मच शक्कर घुल जाये तो यही होता है। पनीली भावनायें मीठी हो जाती है और आसमां थोड़ा और झुककर पलकों पर बैठा लेने को बेताब। जी हाँ ये भारतीय क्रिकेट के महाराज की विदाई है कोई खेल नहीं। विदाई जीत के उस दादा की जो ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में पीटकर आता है। अंग्रेजों के भद्र स्टेडियम में अपने जज्बात दबाता नहीं बल्कि साथियो के चौकों और छक्कों और टीम की जीत पर टी शर्ट उतारकर हवा में लहराता है। जिसकी रहनुमाई में १४ खिलाडियो का समूह 'टीम इंडिया' हो जाती है। जो जीते गए मैचों की ऐसी झडी लगाता है की बस गिनते रह जाओ। जो 'टीम ''निकाला मिलने'' पर टूटता नहीं है। लड़ता है। समय का पहिया घूमता है और प्रिन्स ऑफ कोलकाता की टीम में वापसी होती है। भारतीय क्रिकेट का ये फाइटर शतक और दोहरे शतक के साथ सलामी देता है।

करीब डेढ़ दशक तक खेल प्रेमियों के दिलोदिमाग पर दादागिरी करने वाले बंगाल टाइगर ने भारतीय क्रिकेट की कमान उस वक़्त संभाली जब हर तरफ अँधेरा था। राह नहीं सूझ रही थी। ये लार्ड ऑफ द विन भारतीय क्रिकेट के सव्यसाची थे । जिन्होंने टीम ही नहीं खेलभावना को पराजय और अवसाद के अंधेरो से बहार निकाल कर बड़े बड़े मैदान में विजय पताका फहरायी। निराशयों के बीच आशा की नई किरण तलाशने की सीख सौरव ने ही टीम इंडिया को दी।

सौरव गांगुली का आना , उसका होना, और उसका जाना हमारे जेहन में हमेशा तरोताजा रहेगा। भारतीय क्रिकेट के परिवर्तन के सूत्रधार के रूप में सौरव सदा याद किये जाएँगे।

इस ग्रेट वारियर को खिलाडी के तौर पर अंतिम सैल्यूट..... ।

धन्यवाद....

शनिवार, 8 नवंबर 2008

शिखर के शहंशाह.....

ये चिट्ठी है सचिन रमेश तेंदुलकर के नाम। इस शख्स को जरा ध्यान से देखिए। एक मध्यवर्गीय का बेटा , जिसने गोरे जेंटलमैन के एक अभिजात खेल में विनम्रता से देसी प्रतिभा का एवरेस्ट खड़ा कर दिया। इस मास्टर ब्लास्टर की लोकप्रियता महाराष्ट्र से निकलकर भारत और फिर एशिया की सीमाएँ लांघकर ग्लोबल हो गई। क्रिकेट रूपी काजल की कोठरी में दो दशक बिताने के बाद भी इस लिटिल मास्टर ने एक भी दाग अपने सफेद और रंगीन कपड़ो पर नहीं लगने दिया। जिसकी उपलब्धि पर चाहने वालो की आखें नम हो जाती है। जिसका खेल देखने के लिए सरहद की सीमायें छोटी पड़ जाती है । जिसके कीर्तिमानों के देसी-विदेशी, श्वेत-अश्वेत , आमिर-गरीब ,बच्चे-बुढे, सब मुरीद हैं । जिसके चौके और छक्को के बीच विज्ञापन कंपनियां झूमती है। जिसके बैटिंग स्टाइल में सर डॉन ब्रैडमैन को अपना ज़माना याद आता है । जिसके मैदान में आते ही स्टेडियम के हर तरफ़ से आवाज़ आने लगती है ..... सचिन जस्ट डु इट , सचिन रोक्स , कम ऑन सचिन और न जाने क्या-क्या। क्रिकेट का ये नाटा उस्ताद जब सामने होता है तो दिग्गज गेंदावाज़ भी बौलिंग से कतराता है । जिसकी कामयाबी सबको अपनी कामयाबी लगती है । फैबुलस फौर का सबसे कद्दाबर शख्स जब भी क्रीज़ पर होता है तो ऐसा लगता है जैसे कोई नया माइलस्टोन इनके दीदार को तरस रहा हो इस क्रिकेट किंग का जब बल्ला बोलता है तो पुराने रिकोर्ड टूटते हैं और नए बनते हैं । ऐसा शख्स जब टेस्ट क्रिकेट में अपने १२ हज़ार रन और ४०वें शतक की ख़बर देता है तो अकस्मात् कुछ दिनों पहले की याद जेहन में तरोताजा हो जाती है । जब क्रिकेट के कुछ तथाकथित ठेकेदार उनके चूकने की बात करते थे । कितने ही लोगो को लगता था कि सचिन रूपी सूर्य अस्त हो चुका है । हर तरफ से ये आवाज़ उठने लगी थी की अब फैवुलस फौर का गोल्डन पिरिअड इतिहास के सुनहरे पन्नो में समां चुका है । लेकिन ऑस्ट्रेलिया के साथ सिरीज़ के दौरान जब सचिन टेस्ट क्रिकेट के १२ हज़ार रन रूपी गगनचुम्बी ईमारत को बिना किसी बाधा के पार कर रिकार्डो का एक नया हिमालय बनाया तो अपने आप उनके आलोचक गूंगे हो गए । उनकी दबी जुबान से भी निकला ही होगा.... वाह सचिन वाह । लेकिन इस महान खिलाड़ी की बानगी देखिये -- वे इन सब चिन्ताओ से दूर रहते हैं की उनकी उपलब्धि का बखान हो रहा है की नही । वे तो बस अपना कम करते रहते है। बकौल सचिन '' मैं इस बारे में नहीं सोचता की कौन मेरे बारे में क्या बोलता और सोचता है। रिकार्ड तो बनते रहते हैं। मगर मेरे लिए टीम का हित सबसे ऊपर है। १६ की उम्र में अपनी मर्ज़ी से आया था। मुझे ये बताने की कोई जुर्रत न करे की मुझे संन्यास कब लेना है । अपनी मर्ज़ी से आया था अपनी मर्ज़ी से जाऊंगा।''
ये नजीर सचमुच उनके चाहनेवालों के लिए एक सुखद संदेश और आलोचकों के लिए यादगार तमाचा है।
क्रिकेट के इस लिजेंड को भविष्य की शुभकामनाओ के साथ हैट्स ऑफ़.........

सब गोलमाल है...

चुनाव जीतने के लिए राजनैतिक दल किसी भी हद तक जा सकते हैं। ये मैं नही भारतीय लोकतंत्र का इतिहास बयां करता है। शायद राजनीति भी इसी को कहते हैं। ये भी मैं नही हमारे यंहा के नेताओ के पिछले कारनामे बताते हैं। लोकसभा चुनाव सर पे है, जाहिर है सभी दल जीत के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। एडी-चोटी का जोर मतलब साजिश। बयानबाज़ी तो नेताओ के रास्ते हैं, इसी पर चल के आज के गरीबों के मसीहा अमीरी का स्विस अकाउंट बनते हैं। ओह मैं भटक गया था...तो बात हो रही थी साजिश की। उस साजिश की जो भगवा रंग को बेरंगा करने के लिए दो सालों से बचा कर राखी गयी थी। मालेगांव धमाके का तार भगवा रंग से जोड़ कर हाथ अपनी पांचो उँगलियाँ घी में डालने की जुगत में है। कभी इसके लिए सनातन धर्म के संगठनों को जिम्मेवार बताया जाता है, तो कभी आधी पतलून वाले सेवकों को। यंहा तक की कुछ संगठनों को बैन करने की भी कोशिश की जा रही है। साधू-संत भी इसके शिकार हो रहे हैं। खैर इसकी पड़ताल चल रही है। अब दूसरी साजिश....ये है भगवा रंग द्वारा सफ़ेद टोपी उतारने की साजिश। पश्चिम की रीजनल पार्टी द्वारा कुछ राज्यों के लोगों को पिटवा कर दिल्ली में कीचड़ भरे तालाब बनवाने की साजिश। अब कीचड़मय माहौल क्यों बनेगा भाई? आप तो समझ ही गए होंगे .... नही समझे । अरे भाई कीचड़ में ही एक ख़ास तरह के फूल खिलते हैं। सवाल ये उठता है की पिटवाने से फूल कैसे खिलेंगे ...जब लोग पीटेंगे तो और वहा के लोग पीटेंगे जहा की राजनीति सबसे पावरफुल होती है, तो जरूर आग लगेगी, और जब आग लगेगी तो जनपथ तक धुंआ जरूर जाएगा। धुंआ से लोग छातपतायेंगे, तो सफ़ेद टोपी ज़मीन पे गिरेगी ही।तो भाई मेरे आवाम के तवे पर राजनीति की रोटी मत सेको ...कंही आवाम बिगर गयी तो सत्ता के सपने का सफर सुबह होने से पहले ही टूट जाएगा...
ये चिट्ठी आई है मेरे पत्रकार मित्र राजीव के www.saffaar.blogspot.com से ....

शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

मज़हब ये तो नहीं सिखाता ?


ये चिट्ठी हमारे आवाम के नाम है। हाल ही में साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी मालेगांव बिस्फोट के मामले में की गई है , सेना के कर्नल पुरोहित भी इसी मामले में पकड़े गए हैं, अब ये वक्त कुछ सोचने का है। हमसब को धर्म के नाम पर होने वाले इन तमाम बखेडो को समझना होगा...
कुछ दिनों पहले की बात है, देश के किसी भी शहर में धमाके होने पर किसी कट्टर मुस्लिम संगठन का नाम आता था , तब मुस्लिमों को तो मानो पुरे विश्व में ही आतंकवादी माना जाने लगा । पर अब लगता है मंज़र बदल चुका है। अब इस बात से किसी को इत्तेफाक नही रखना चाहिए की आतंकवाद का कोई मज़हब नही होता। क्या हिंदू क्या मुस्लिम मज़हब के नाम पर फायदे बटोरने के लिए तमाम कवायद की जाती है, यह साबित हो चुका है। विश्व हिंदू परिषद् , बजरंग दल जैसे संगठन तो पहले से ही धार्मिक कट्टरता को हवा देते रहे है, पर अब वे आतंकी वारदातों को अंजाम देने में मदद करे तो यह उनके आतिवादी रवैये का चरम है।
बहरहाल ऐसे में हमारी सेना में भी धार्मिक कट्टरता हावी होने लगे तो इससे ज्यादा दुखदायी कुछ नही हो सकता। अब तक तो सेना के सभी जवान साथ मिलकर देश के शत्रुओं के खिलाफ लड़ते रहे थे, अब तक किसी मुस्लिम सिपाही को तो देशद्रोह के आरोप में नही पकड़ा गया, किसी ने जंग के मैदान में पाकिस्तानी सेना का पक्ष नही लिया, पर हिंदू धर्मान्धता से सेना भी नही बची ।
अगर धर्म के नाम पर ऐसा होने लगा है तो भइया हम कहेंगे-------
मत बांटो हमें मज़हब के नाम पे...
मत काटो हमें मज़हब के नाम पे,
है यही मज़हब तो फिर !
इससे अच्छा छोड़ दे मज़हब , खुदा के नाम पे........
धन्यवाद .......

गुरुवार, 6 नवंबर 2008

ख़ुद को बदलने का वक्त...........

ये चिट्ठी आई है - www.humaap.blogspot.com के अखिलेश जी द्वारा , आप भी इसे जरुर पढ़े और अपना महत्वपूर्ण सुझाव देने का कष्ट करे.......आप सब का समीर .......
हो गई है पीर, पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से अब कोई गंगा निकलनी चाहिये,
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
कवि दुष्यंत के कहे इन कथनों को अब चरितार्थ करने की जरुरत है। हमारे देश में भी अब एक आन्दोलन ,एक बदलाव की जरुरत है। हम भारतीय भले ही अपनी गंगा -जमुनी संस्कृति और साझे विरासत पर गर्व करे लेकिन आज हमारे देश में साम्प्रदायिकता हावी है। साझे विरासत पर क्षेत्रवाद हावी है। ऐसे में हम युवाओ को अमेरिकी बराक ओबामा से और अमेरिकियों से सबक लेने की जरुरत है।जहाँ राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपने पहले भाषण में ओबामा ने संबोधित किया -" वी आर नॉट रेड ऑर ब्लू स्टेट्स , वी ऑल आर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका " । मतलब अमेरिका एक है। वही हमारे भारत में अभी क्षेत्रवाद भयानक रूप ले चुका है। बिहारी , बंगाली, मराठी, असामी सभी की जंग छिडी है। धर्म के नाम पर हम बंट चुके हैं। धर्म भी भयावह रूप ले चुका है, मुस्लिम और हिंदू आतंकवाद की बात की जा रही है।ऐसे में युवाओं को ख़ुद समझना होगा क्षेत्रवाद, धर्म जैसे मुद्दों से किनारा कर भारत को एक बनाना होगा । कहते है ना -" गंगा की कसम ......यमुना की कसम , ये ताना बाना बदलेगा, तू ख़ुद तो बदल .....तू ख़ुद तो बदल तब ये ज़माना बदलेगा........

बुधवार, 5 नवंबर 2008

व्हाइट हाउस में ब्लैक ओबामा


सुबह से मै टीवी पर टकटकी लगाये बैठा था बीस महीने से चल रहे अमेरिकी चुनावी घमासान का नतीजा देखने के लिए। आज से पहले मै किसी भी दूसरे देशों की राजनीति में ज़्यादा रूचि नही रखता था। २१९ सालो के अमेरिकी लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहला चुनावी घमासान जो दिल की बेचैनी को बढ़ा दे। एक-एक कर वोटो की गिनती हो रही थी, इधर मेरी धड़कने भी तेज़ होती जा रही थी। आख़िरकार वो लम्हा आ ही गया और ओबामा जीत गया। बराक ओबामा......अश्वेत ओबामा.....डेमोक्रेटिक ओबामा..... सबका ओबामा अमेरिका का ४४वा राष्ट्रपति चुन लिया गया। ऐसा राष्ट्रपति जो काला है। १७८९ में जॉर्ज वाशिंगटन के बाद अमेरिकी इतिहास में पहली बार कोई अश्वेत इस पद पर बैठा है। अफ्रीकी मूल के ओबामा ने रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉन मैक्केन को १५५ के मुकाबले ३३८ वोटो से हराया। इसे एकतरफा जीत कहना ग़लत नही होगा क्योंकि बराक को ५०% से भी ज़्यादा मत मिले। वैसे व्हाइट हाउस पर कब्जा करने के लिए बराक को सिर्फ़ २७० मतों की दरकार थी। जहा तक मेरा मानना है, इस चुनाव को दिलचस्प नही कहा जा सकता। २००४ में जो मुकाबला जॉर्ज बुश और जॉन कैरी के बीच हुआ था वो मजा इस बार नही देखा गया। मै बता दू की बिडेन अमेरिका के उपराष्ट्रपति होंगे। ये लोकतंत्र की ही देन है जो एक दबे-कुचले ओबामा को विश्व के सर्वोच्च पद पर आसीन कर दिया। कुछ साल पहले तक लोग ओबामा के साथ खाना भी पसंद नही करते थे। पर आज वो दुनिया के लिए आदर्श है। २० जनवरी २००९ को बराक अपना पहला कदम सफ़ेद घर में रखेंगे। शिकागो के ग्रांट पार्क में अमेरिकी समय के मुताबिक रात के तकरीबन ग्यारह बजे ओबामा ने अपने देश की आवाम जो लगभग १० लाख की संख्या में मौजूद थे को संबोधित किया। उनके साथ स्टेज पर उनकी बीवी और बच्चे मौजूद थे। सबसे पहले जो बराक ने कही वो थी.... ''एस, वी कैन''... हाँ हमने कर दिया। जनता के साथ-साथ बराक ने अपने परिवार और नानी का भी शुक्रिया अदा किया। सबसे बड़ी बात जो ओबामा ने कही '' हम नया अमेरिका बनायेंगे, आम आदमी की सरकार जिसमे डेमोक्रेसी, लिबर्टी और ओपर्चुनिती होगी''। ग्रांट पार्क में मौजूद लाखों लोगों की आँखे नम थी... ऐसा लग रहा था मानो सभा में मौजूद सभी आदमी सबसे ताक़तवर राष्ट्र का राष्ट्रपति बन गया हो।
पत्रकार मित्र राजीव ने अपने ब्लॉग saffaar.blogspot.com में लिखा .......

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

'द अनसंग हीरो' को आखिरी सलाम

''सर्जरी हुई, कुछ चोटे आई और शरीर ने कहा थम जाओ।'' भारत का ये जम्बो जेट बतौर खिलाड़ी क्रिकेट को अन्तिम सलाम किया और भारतीय क्रिकेट का एक और अध्याय ख़त्म हो गया।अंतर्राष्टतीये क्रिकेट में अपने आगमन के साथ ही कुंबले ने क्रिकेट जगत को जिस तरह चमत्कृत करना शुरू किया , उससे साफ जाहिर हो गया था की वो महज एक खिलाड़ी नही बल्कि उनका पदार्पण ही इतिहास निर्माता के रूप में हुआ था।
१३२ टेस्ट .....६१९ विकेट और २१७ वोनडे....३३७ विकेट ..... उनकी सफल गेंदबाजी की कहानी बयाकरने के लिए काफी है। कुंबले को अपनी प्रतिभा साबित करने के लिए कभी पिच का मोहताज़ नही होना पड़ा। लेगी कुंबले भी गेंद को हवा में लहराने की बजाय उसे पिच से स्पीड देने में एक्सपर्ट मने जाते थे। १८ सालके लंबे करियर में कुंबले ने अपनी टॉप स्पिन, गुगली, फ्लिपर, और फ्लाईट से दुनिया के दिग्गज बल्लेबाजों को अपनी फिरकी के जादू से चकमा देते रहे।
मुझे नहीं मालूम मुझसे कितने प्रतिशत लोग सहमत होंगे लेकिन परफेक्ट टेनर को इस टाइटिल से नवाजने में मुझे कोई गुरेज़ नहीं की वे भारतीय क्रिकेट के अनसंग हीरो हैं। कोटला के सुलतान का पदार्पण उस दौर में हुआ जिस समय भारतीय रिच्केट का भगवान् सचिन तेंदुलकर को माना जाता है। बेशक क्रिकेट अगर धर्म है तो सचिन भगवान्।लेकिन किसी ने सोचा की कुंबले भी गेंदबाजों के भगवान् हैं। जो अपने कद से बड़े कारीगर हैं और अपनी इस कारीगरी से हर भारतीय के चेहरे पर हमेशा मुस्कान बिखरते रहे हैं। लेकिन अफ़सोस जितनी तबज्जो उन्हें मिलनी चाहिए थी वो मुकम्मल जगर उन्हें नहीं दी गई।
इस अनसंग हीरो की सबसे बड़ी विशेषता रही है क्रिकेट के प्रति उनका समर्पण, जुझारूपन, अधिक से अधिक विकेट लेने की भूख और नेवर गिव अप वाली फाइटरकी छवि। फिल्ड में उनकी एकाग्रता और कठिनाइयों को बगैर, कोई भावना दर्शाए मुकाबला करने की नजीर हमेशा कबीले तारीफ रही है। हाथ की उंगलियो में ११ स्टिचेस या फ़िर जबडा टुटा हो , उन्होंने हमेशा विरोधी टीम को नेस्तनाबूद कर अपनी जीवटता का परिचय दिया है।
गेंदबाजों का सपना अगर जम्बो जैसा बनना है तो कौन कहता है की उन्हें अपने रोल मॉडल के लिए सपना नहीं देखना चाहिए। हर कोई इस उचाई तक पहूचने का सिर्फ़ सपना ही देख सकता है।
भारतीय क्रिकेट में अनिल राधाकृष्णन कुंबले ने जिस लकीर को अपने बूते खिचा है उस रिकार्डो के हिमालय को पार करने के लिए गेंदबाजों के घुटने घिस जायेंगे। कुंबले संन्यास लेकर आगे बढ़ गए हैं लेकिन भारतीय क्रिकेट टीम अब भी वहीँ ठहरी हुई है की कुंबले की जगह कौन लेगा। कौन हारे हुए मैच को जीत में परिवर्तित करेगा। सच कहा जाए तो कुंबले का कोई substitute नहीं है।'Action speak lauder than voice' को fallow करने वाले कुंबले को मैंने अनसंग हीरो कहा है।
जम्बो जेट को आखिरी सलाम..... ।