शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

किसी खामोश रस्ते से कोई आवाज़ आती है ... तुम्हें किसने कहा पगली तुम्हें मैं याद करता हूँ ...



अजब पागल सी लड़की है।।।
मुझे हर ख़त में लिखती है ... 
मुझे तुम याद करते हो, 
तुम्हें मैं याद आती हूँ,

मेरी बातें सताती है 
मेरी नींदें जगाती है,
मेरी आँखें रुलाती है,
दिसंबर की सुनहरी धुप में अब भी टहलते हो,
किसी खामोश रस्ते से कोई आवाज़, आती है ...

किसी खामोश रस्ते से कोई आवाज़, आती है।।।।
ठिठरती सर्द रातों में तुम अब भी छत पे जाते हो ,
फलक के सब सितारों को, मेरी बातें सुनाते हो,
किताबों से तेरे इश्क में कोई कमी आई,
या मेरी याद के शिद्दत से आँखों में, नमी आई।।।

अजब पागल सी लड़की है।।।
मुझे हर ख़त में लिखती है ...

जवाबन उसको लिखता हूँ ...

मेरी मशरूफियत देखो।।
सुबह से शाम ऑफिस में, चिराग -ए -उम्र जलता है।।।
फिर उसके बाद दुनियां की, कई मजबूरियां पांवों में बेड़ियाँ डाल रखती है ...
मुझे बेफ्रिक चाहत से भरे सपने नहीं दीखते,
टहलने जागने रोने की मोहलत ही नहीं मिलती ...

सितारों से मिले अरसा हुआ,
नाराज हूँ शायद,किताबों से शगफ़  मेरा, अभी  वैसे ही कायम है, 
फर्क इतना पड़ा है अब, उन्हें अरसे में पढता हूँ।।।।

तुम्हें किसने कहा पगली ...तुम्हें मैं याद करता हूँ ...

मै खुद को भुलाने की मुसलसल जुश्त्जू में हूँ, 
तुम्हें मैं याद आने की मुसलसल जुश्त्जू में हूँ।।।
मगर ये जुश्त्जू मेरी बहुत नाकाम रहती है,
मेरे दिन रात में अब भी, तुम्हारी शाम रहती है,
मेरे लब्ज़ों की हर माला तुम्हारे नाम रहती है।।।

तुम्हें किसने कहा पगली, तुम्हें मैं याद करता हूँ ...
पुरानी बात है जो लोग अक्सर गुनगुनाते हैं,
उन्हें हम याद करते हैं, जिन्हें हम भूल जाते हैं।।।
अजब पागल सी लड़की है।।।

मेरी मशरूफियत देखो,
तुम्हें दिल से भुलायुं तो तेरी याद आये ना।।
तुम्हें दिल से भुलाने की मुझे फुर्सत नहीं मिलती,

और इस मशरूफ जीवन में, तुम्हारे ख़त का एक जुमला ...
तुम्हें मैं याद आती हूँ।।।।।
मेरे चाहत की शिद्दत में कमी होने नहीं देता,,, 
बहुत रातें जगाता है,मुझे सोने नहीं देता।।।

तो अगली बात ख़त में ये जुमला नहीं लिखना ...
अजब पागल सी लड़की है, 
मुझे फिर भी ये लिखती है ....  
मुझे तुम याद करते हो।।।। 
तुम्हें मै याद आती हूँ ....
                                 .... आतिफ सईद 

 धन्यवाद ...