इस बार की चिट्ठी है मेरे दोस्त - I am the Best के बारे में। नाम पे मत जाइये। ये उसका तकियाकलाम था और हम दोस्तों ने उसका नाम ही रख दिया था।किस तरह वोह बचपन से ही विदेश जाने के लिए fascinate था...फिर समय के साथ उसका विदेश जाना॥हमरा साथ छूटना.समय बिताना और क्यों और कैसे उसकी वतन वापसी होती... आप भी पढिये.."यादें बस यादें रह जाती है"...विलायत जाने के साल भर बाद उसके द्वारा लिखा गया मेल के कुछ हिस्से...
"जेब में भारतीय पासपोर्ट और मन में विलायती सपने।दोनों के मेल से एक नए देश,नई ज़मीं,नए माहौल मे जाना अपने आप मे अजीब है।वतन छूटा।गलियां छूटा। लोग छूटे।मौसम छूटा ।पहचान छूटा । शुरू के वर्षो में छोटी से छोटी हर छूटी हुई चीज़ का दर्द सालता रहा। स्कूल से कॉलेज तक के साथी का साथ छुटता चला गया। यहाँ तक की मोहल्ले का पानवाला राजू याद आता रहा जो हमारे नाम के साथ साथ ये भी जनता था की हमें कैसा पान पसंद है और कितने नंबर का तम्बाकू। सिगरेट का कौन का ब्रांड चाहिए। गली के किनारों पर उपेक्षित पड़े कूड़े को सम्मान देती गाय भैंसे याद आती रही। बेघर कुत्ता याद आता रहा जब नैएट शो देखने के बाद घर लौटते पर भौकता हुआ पीछे दौड़ता और हम सभी को घर के दरवाजे तक पहुचकर विदा लेता। माँ के हाथ की बनी दाल सब्जी याद करके दिल रोता रहा। हाय। वो स्पेशल छौंक हाय! वो लजीज कबाब,जिन्हें खान चाचा टपकते पसीने के बीच जब प्याज के लच्छे और तीखी चटनी के साथ परोसते तो हमलोग का उंगलियाँ चाटते हुए चिल्लाना और मोहल्ले के तथाकथित बुद्धिजीवी का हमें छिछोरा समझाना याद आता रहा। यादो का एक हुजूम था जो आंधी की तरह आता रहा और इस दुसरे मुल्क में बसने को कभी मुश्किल तो कभी आसान बनाता रहा।
मगर मेमोरीचिप की भी एक सीमा होती है। फिर नई आकांक्षाओ को पूरा करने और एक अदद पहचान बनाने की जद्दोजहद के बीच संघर्ष का एक अध्धाय शुरू हुआ॥ और इस बीच यादो का साया दम तोड़ता गया॥ और समीर व्यावहारिकता का भी तकाजा था की अतीतजीवी बनकर ये संभव नहीं॥ लेकिन मन में एक आस की चंद पौंड कमाने के बाद बेहतर जीवन के साथ अपने वतन,अपनी मिटटी लौट जाऊ.."
दिन बीता। महिना बीता और ७ साल कैसे बीत गए। मालूम ही नहीं चला॥सब अपनी ही बनायीं दुनिया में खो गए॥ कभी कभार हमलोगों की मेल के जरिये बात हो जाया करती थी...उसी दरमयान मैंने एकबार उससे पूछा -"रांची लौटने की इच्छा मन के किसी कोने में दबी है या नहीं।" ऐसा पूछने पर उसका बदला सुर मुझे अचंभित कर गया॥ वो कहने लगा.. "इतने वर्षो में बहुत कुछ बदल गया होगा न इंडिया में। अरे गर्मी और धुल में एलर्जी हो जाती है। पोल्लुशन इतना की साँस लेना मुश्किल॥ जगह जगह गन्दगी। जिधर देखो गाय, भैस कूड़ा चरती नज़र आती है। पानी ? बस सुबह शाम आधा घंटा। बिजली?जब चाहे लोडशेडिंग। बाज़ार का खाना तो सिस्टम को बिलकुल सूट नहीं करता। खान चाचा के कबाब में इतना फैट और मिर्च मसाला होता है की उन्हें देखना भी पाप है।"
फिर अचानक ऑरकुट पर उसका मैसेज आता है." I am coming Bharat bag & baggage." मेरे मन में प्रश्नों की लम्बी फेहरिस्त तैयार हो गयी की इस बच्चे को अचानक क्या हो गया जो इन गुजरे सालो में विलायती राग अलापने के अलावा कुछ नहीं करता था। वहा जॉब भी बढ़िया थी। फिर ये अचानक "मेरा भारत महान क्यों"।
खैर! एक रात खान चाचा के छोटे लड़के ने सुचना दी की कल खान चाचा के यहाँ वही लजीज कबाब का न्योता आया है। जरूर आना है। सभी लंगोटिया यार नियत समय पे वहां पहुच गए। तभी एक जाना पहचाना शख्स ब्लैक मर्सिडीज से उतरता है॥ हमलोग दंग रह जाते है।"अरे ये तो अपना I am the Best है बोले तो राकेश।" पुरानी यादो से धुल की परत हटती चली गयी। खान चाचा की प्लेट की तरह। मैंने पूछा "क्यों रे विलायत की तो बहुत तरफदारी कर रहे थे फिर ये सब... अचानक..." उसने बड़ी साफगोई से बताया की--"सच है इस बीच बहुत कुछ बदल गया है। भारत के टेलिविज़न चैनल चौबीस घंटे भारत के समाचारों का निर्यात करते हैं। टीवी सीरिअल बदलते भारत का सामाजिक चेहरा पेश करते हैं। इंडिया के बिजनेसमैन वैश्विक बाज़ार से टक्कर ले रहे है। भारतीय फिल्मो की धमक अमेरिका से विलायत तक हो गयी है। भारतीय चावल, डाले, मसाले, पापड़, राजनीति, मंदिर,मस्जिद, संस्कार के Export Quality की बात ही कुछ और हो गयी है। पासपोर्ट! वो तो इतना लचीला हो गया है की क्या अमेरिका और क्या ऑस्ट्रेलिया। क्या गर्मी क्या सर्दी। लम्बे वीकैंड पर यूरोप जाओ या कही और। अब महीनो इंतजार की नौबत नहीं।
और हम जैसे प्रवासी भारतीय। "लौटे की न लौटे " की दुविधा और अनिश्चय में आबाद होने का इंतजार कर रहे हैं।NRI अब भी प्रवास में है। आधा इधर आधा उधर। जिस देश में बसना चाहते हैं उसे पूरी तरह अपना नहीं पाया। और इस वैश्विक मंदी ने सभी की कमर ही तोड़ दी है। नौकरी की टेंशन और अपनों से बिछड़ने का गम हमेशा सालता रहता है। यहाँ वो अजनबी है। दिल और दिमाग में हमेशा द्वंद चलते रहता है। उसके दिल से पूछो तो उसे भारत चाहिए जिसे वो छोड़कर आया था। और अब भारत में भी क्या कुछ नहीं है। जो उसे प्रवासी जीवन बिताने के लिए चाहिए। मैंने इस बार अपने दिल की सुनी और वक्त की चतुराई भी यही थी। मैं इस मिथक को भी पीछे छोड़ना चाहता था की NRI का मतलब सिर्फ Non Returnable Indian नहीं है। सोचता हूँ भारत अब इतना बुरा तो रहा नहीं। Infact बुरा तो कभी था ही नहीं। सिर्फ नज़रिए का फर्क था। अपनी ज़मीन तो अपना ही होता है॥ बहुत पैसे कम लिये। अब यही पर अपने देश के लिये कुछ करूँगा।
इसी बीच खान चाचा की वही रौबदार आवाज़ से सभी की तल्लीनता टूटी।- "अरे बच्चो देखते ही देखते तुमलोग इतने बड़े हो गए और मैं चाचा से दादा। और एक बात। कल से मेरा तीसरा बेटा जौहर भी तुमलोगों को अरेबियन कबाब खिलाएगा। वह आज हमेशा के लिये सउदी अरब से अपना मुल्क वापस आ रहा है। हमलोग सभी जोर से हँसने लगे और मुझे सुखद आश्चर्य हुआ और दिल को तसल्ली भी की वाकई अब NRI- Non Returnable Indian नहीं रहा। NRI,OI हो गया है यानि Only Indian।
"मेरा भारत महान।"
धन्यवाद।